रुके चुनावी भ्रष्टाचार

संपादकीय
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मतदान से जन प्रतिनिधियों का चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है. उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों से अपेक्षा की जाती है कि वे मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए अवैध तरीके नहीं अपनायेंगे. चुनावी खर्च की सीमा तय है और प्रचार के लिए निर्देश हैं. स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए तिथियों की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू कर दी जाती है. अधिक संख्या में पुलिस बल और प्रशासनिक कर्मियों की तैनाती भी होती है. इन कवायदों के बावजूद पार्टियां और उम्मीदवार मतदाताओं को लुभाने के लिए नगदी, शराब, उपहार आदि का वितरण करते हैं. यह बीमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हर स्तर- पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव- तक जा पहुंची है और लगातार बढ़ती भी जा रही है.

इस माह पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. चुनाव आयोग के अनुसार, इन राज्यों में अब तक 1,760 करोड़ रुपये की नगदी, शराब, उपहार आदि की बरामदगी हुई है. चुनाव प्रक्रिया के अंत तक इसमें बढ़ोतरी का अनुमान है. मतदाताओं को रिश्वत देने का यह चलन किस गति से बढ़ रहा है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन राज्यों में इस साल बरामद नगदी और चीजों का मूल्य 2018 के चुनाव की तुलना में सात गुना से भी अधिक है. सबसे अधिक बरामदगी तेलंगाना और राजस्थान में हुई है. इसके बाद मध्य प्रदेश है. इन दो राज्यों में मतदान अभी होना है. मिजोरम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में वोट डाले जा चुके हैं. आचार संहिता के उल्लंघन और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इस बार चुनाव आयोग ने निगरानी को सुदृढ़ करने के लिए तकनीक का भी सहारा लिया है ताकि केंद्रीय और राज्य स्तर की विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल हो सके.

 

आयोग की सक्रियता और सतर्कता बढ़ाने की आवश्यकता है. साथ ही, चुनावी प्रक्रिया में शामिल प्रशासनिक अधिकारियों एवं कर्मियों को अधिक सचेत रहना चाहिए. लेकिन केवल इतना करने से स्वच्छ चुनाव की गारंटी नहीं दी जा सकती है. चुनावों में धन-बल का इस्तेमाल न हो, इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी और जवाबदेही राजनीतिक दलों की है. जिस प्रकार प्रत्याशियों के विरुद्ध दर्ज मामलों की जानकारी सार्वजनिक की जाती है, उसी तरह यह भी मतदाताओं को बताया जाना चाहिए कि जो अवैध नगदी और अन्य चीजें बरामद हुई हैं, वे किस उम्मीदवार की हैं. चुनावी भ्रष्टाचार रोकने में मतदाताओं को भी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए. यह हमें समझना होगा कि जो भ्रष्टाचार के सहारे जीतेगा, वह कभी जनता की सेवा को प्राथमिकता नहीं देगा. इसलिए, चुनावी भ्रष्टाचार के रोग का उपचार आवश्यक है.

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